अमित शाह के एक बयान के बाद बिहार में नीतीश कुमार की बीजेपी से नाराज़ होने की चर्चा शुरु हुई, नीतीश के समर्थन में पटना में पोस्टर लगे… अमित शाह ने कहा कि बिहार चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ा जाएगा इसका फ़ैसला बीजेपी और जेडीयू की संयुक्त बैठक में लिया जाएगा. बयान के वायरल होते ही बिहार में नीतीश के समर्थन में पोस्टर लगने लगे- बात बिहार की नाम नीतीश कुमार का हो… नीतीश की पार्टी की ओर से दबाव बढ़ते ही प्रदेश स्तर के नेता तो सफ़ाई देने और नीतीश को खुश करने में जुट गए लेकिन अमित शाह न सिर्फ नीतीश के सामने झुके नहीं बल्कि नीतीश के किसी भी फ़ैसले लेने की स्थिति से निपटने की तैयारी करने में जुट गए और नीतीश के बराबर 16 सांसदों के जुगाड़ में जुट गए और इसके लिए सबसे मुफीद जगह लगी महाराष्ट्र… मतलब महाराष्ट्र में आज जो हो रहा है वो अचानक नहीं हो रहा है बल्कि इसकी बुनियाद नीतीश की नाराज़गी वाली ख़बरों के समय ही तैयार कर दी गई थी…
नीतीश की नाराज़गी की ख़बरों के बाद से ही महाराष्ट्र में महाविकास उघाड़ी में बिखराव की ख़बरें आने लगी, शरद पवार और उद्धव ठाकरे की पार्टी की ओर से बीजेपी की तारीफ़ में क़सीदे पढ़ी जाने लगी तो इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की ओर से उपेक्षा किए जाने के आरोप लगने लगे. महाराष्ट्र में अमित शाह के एक्टिव होते ही शरद पवार ने आरएसएस की प्रशंसा करते हुए संघ के काम को ‘अनोखा’ बताया. उन्होंने शिक्षा में RSS के प्रभाव और श्रमिकों को आजीविका देने के प्रयासों का भी जिक्र किया. इसके जबाव में देवेंद्र फडणवीस ने भी कह दिया कि शरद पवार चाणक्य हैं। उन्होंने महसूस किया होगा कि लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी की ओर से फेक नैरेटिव फैलाया गया था, जो विधानसभा चुनावों में पंचर हो गया। पवार को पता है कि यह शक्ति लगातार राजनीति नहीं करती है, ये राष्ट्र का निर्माण कर रही है। कई बार अपने विरोधी की भी तारीफ करनी पड़ती है, इसी वजह से RSS की तारीफ की होगी।’
इससे ये तो साफ़ हो गया कि अगर शरद पवार बीजेपी के लिए साफ्ट हैं तो बीजेपी भी शरद को अपनाने के लिए आतुर है दूसरी ओर शिवसेना के नेता संजय राऊत भी लगातार देवेंद्र फडणवीस की तारीफ़ कर रहे हैं और बीजेपी के साथ गठबंधन से इनकार भी नहीं कर रहे हैं मतलब शिवसेना उद्धव गुट को भी बीजेपी के साथ जाने में कोई दिक़्क़त नहीं है… शिवसेना उद्धव गुट और एनसीपी शरद गुट अगर बीजेपी के साथ हो जाते हैं तो फिर नीतीश के नाराज होने की स्थिति में भी कम से कम केंद्र की राजनीति में मोदी सरकार पर कोई आंच नहीं आएगी. ये अलग बात है कि बीजेपी चाहती है कि बिहार में भी बीजेपी का मुख्यमंत्री हो लेकिन केंद्र की सत्ता से कोई समझौता नहीं करना चाहती इसिलिए बिहार के चुनाव से पहले वो दिल्ली की सत्ता मज़बूत बनाए रखना चाहती है इसिलिए महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ लाने का मक़सद बिहार में किसी भी तरह की विपरीत परिस्थिति होने पर केंद्र की सरकार बचाए रखने का इंतज़ाम करना है…