3 महीने और 7500 करोड़ के खर्चे में संगम नगरी बन गई स्वर्ग, 8500 करोड़ खर्च करके भी पाँच साल में साफ़ नहीं हो पाई यमुना, योगी स्टाइल और केजरीवाल स्टाइल का फर्क साफ़ है रोज़गार की आ गई बहार, महाकुंभ ने यूपी में कर दिया चमत्कार, प्रयाग की अर्थव्यवस्था में आई उछाल को देखकर ख़ुश हो गए लोग, तो यमुना के मछुआरे केजरीवाल को कोस रहेयोगी का गणित देखते ही दिग्गज कंपनियों के सीईओ का ठनक गया माथा, चक्कर खाकर गिर गए बड़े-बड़े अर्थशास्त्री, अरविंद केजरीवाल को लेने लगे निशाने पर, कहा पैसों का हिसाब तो देना पड़ेगा
आज हम आपको दाएं बाएं की बात नहीं बताएंगे. सिर्फ इस एक तस्वीर की कहानी बताएंगे. एक तरफ़ हैं त्रिवेणी का संगम. जहां लगा है महाकुंभ. और एक तस्वीर में है दिल्ली की यमुना नदी. संगम के किनारे महाकुंभ या अर्द्कुंभ लगता है, लेकिन हर चार साल या 12 साल पर और यमुना किनारे हर साल छठ पूजा होती है. वैसे भी संगम और यमुना का कनेक्शन तो है. क्योंकि संगम में मिलने वाली तीन नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती ही है. दिल्ली की यमुना की हालत तो आप सालों से देखते ही आ रहे हैं. लेकिन आज उसकी कहानी से पहले संगम की कहानी समझिए.
आपके सामने एक न्यूज़ आर्टिकल हैं. जिसमें साफ़ तौर पर लिखा गया है कि संगम के किनारे लगने वाले महाकुंभ के लिए योगी सरकार ने कुल 7500 करोड़ रुपए खर्च किए हैं लेकिन इससे कमाई की संभावना है 2 लाख करोड़. अब जब से कुछ लोगों ने सुना कि संगम के किनारे लगने वाले महाकुंभ के लिए 7500 करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं तो लगे वो छाती पीटने. कुछ लोगों को ये 7500 करोड़ खर्च करके महाकुंभ का आयोजन पैसों की बर्बादी लगी. लेकिन क्या आप जानते हैं बीते 7-8 सालों में यमुना की सफ़ाई में केजरीवाल सरकार ने कितने पैसे लुटाए. क़रीब 8500 करोड़ रुपए. और नतीजा क्या निकला. 2017 में यमुना में जितना प्रदूषण था आज उससे 8 गुना ज्यादा बढ़ चुका है.
संगम के किनारे महाकुंभ में होने वाला खर्च और यमुना की सफ़ाई में होने वाले खर्च को अब बिग पिक्चर में समझते हैं.
यमुना की सफ़ाई में खर्च किए गए 8500 करोड़ रुपए पानी में डूब गए ना तो यमुना साफ़ हुई, ना ही नई नौकरी या रोज़गार का सृजन हुआ महाकुंभ में होने वाले 7500 करोड़ रुपए से इतने लोगों को रोज़गार मिला जिससे क़रीब 2 लाख करोड़ की की कमाई होने की उम्मीद है इससे प्रयागराज के 5 लाख छोटे बड़े दुकानदारों, रिक्शा चालको, ड्राइवर्स को काम मिला
सिर्फ 2 दिनों में ही महाकुंभ में 5.50 करोड़ श्रद्धालु आ चुके हैं क़रीब साढ़े पाँच करोड़ लोगों के लिए रहने के लिए रहने के लिए होटल या टेंट किराए पर लिया होगा कुछ लोग स्नान के बाद खाने पीने के लिए रेस्टोरेंट में गए होंगे तो रेस्टोरेंट वाली कमाई हुई होगी कुछ लोग रिक्सा, कुछ लोग ऑटो, कुछ लोग बसों में, कुछ रेल में, कुछ प्राइवेट गाड़ियों से प्रयागराज आए होंगे महाकुंभ में आने के बाद कुछ लोगों ने प्रसाद खरीदा होगा, प्रसाद बनाने बेचने वाले दुकानदार लोकल होते हैं कुछ लोगों ने महाकुंभ के बाद प्रयागराज के बाजारों की रौनक देखी होगी या खरीददारी की होगी प्रयागराज-यूपी के साथ साथ देश की इकोनॉमी को 45 दिनों के लिए महाकुंभ ने रफ़्तार दे दी है
ये सारा काम हो रहा है सिर्फ 45 दिनों में 7500 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद. जिससे लाखों लोगों की कमाई हो रही है और सरकार को टैक्स के रूप में राजस्व भी मिल रहा है. और दूसरी तरफ़ महाकुंभ के खर्चे से क़रीब 100 करड़ो ज्यादा खर्च करने के बाद भी दिल्ली की यमुना को केजरीवाल सुधार नहीं सके
एक ओर प्रयागराज की पावन धरती पर दुनिया भर से आए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है, पावन प्रयागराज में पैर रखने के लिए जमीन कम पड़ गई है तो दूसरी ओर दिल्ली में चुनावी शंखनाद हो चुका है और बीजेपी अपने राजनीतिक वनवास को खत्म करने की कोशिश में लग गई है… महाकुंभ की व्यवस्था देखकर पूरी दुनिया योगी की दीवानी हो गई है, पाकिस्तानी भी तारीफ में कसीदें पढ़ रहे हैं तो बुलडोजर बाबा कहकर पुकारने वाले लोगों को समझ नहीं आ रहा कि इस शानदार व्यवस्था के लिए योगी को क्या उपाधि दें… लेकिन सीएम योगी ने कुंभ की जितनी भव्य तैयारियां की है उतना ही दिव्य महाकुंभ का आर्थिक मॉडल भी है… महाकुंभ का ऐसा आर्थिक मॉडल है कि बड़े से बड़े अर्थशास्त्री भी बारीकी से समझने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर योगी ये करिश्मा कैसे करेंगे… ये हम आपको आंकड़ों के माध्यम से समझाएंगे लेकिन उससे पहले आपको बताते चलें कि दिल्ली की चुनावी सरगर्मियों के बीच यमुना की सफाई का मुद्दा अपने उफान पर है… और उसकी भी एक बड़ी वजह है महाकुंभ का ये आयोजन..
आरटीआई से मिली एक जानकारी के अनुसार दिल्ली में यमुना की सफाई पर 7 सालों में 8500 करोड़ रुपये खर्च हुए हैं… इसपर बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए आप सरकार से पूछा है कि आखिर सात सालों में जो 8500 करोड़ खर्च करने का दावा किया गया, वो कितना सही है? अगर ये रकम खर्च हुए तो नदी की हालत ऐसी क्यों है? भारतीय जनता पार्टी के नेता हरीश खुराना ने कहा, “आरटीआई से जानकारी मिली है 07 साल में 8500 करोड़ रुपये दिल्ली सरकार ने यमुना सफाई पर खर्च किए, लेकिन यमुना गंदी की गंदी, मैली की मैली है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने जो वादा किया था, उसका क्या हुआ, 8500 करोड़ रुपये छूटी रकम नहीं है, ये किसकी जेब में चले गए?”
दिल्ली में जहां 7 साल में 8500 करोड़ खर्च करने के बाद भी यमुना साफ नहीं हो पाई है और ना ही एक रुपये का रोजगार पैदा हो पाया है, उल्टा हुआ ये कि यमुना में प्रदूषण बढ़ने के चलते मछुआरों की रोज-रोटी पर भी संकट खड़ा हो गया है… कुल मिलाकर कहें तो केजरीवाल सरकार ने 8500 करोड़ रुपये पानी की तरह यमुना की साफ-सफाई पर बहा दिए और रिजल्ट निकला शुन्य…
वहीं योगी आदित्यनाथ का दावा है कि महाकुंभ के आयोजन के लिए कुल 7500 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं जिससे 2 लाख रुपये की आय होगी… अब ये आय कैसी होगी जरा ये भी समझ लेते हैं… एक रिपोर्टे के अनुसार पहले ही दिन महाकुभ में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 1 करोड़ 65 लाख के पार कर गई वहां दूसरे दिन ये संख्या 3 करोड़ 50 लाख के पार कर गई… मतलब 2 दिनों में ही ये संख्या 5 करोड़ 50 लाख के पार कर गई और दिन पर दिन ये संख्या बढ़ती जाएगी…
अब जरा गणित लगाइए कि इतने सारे लोग जब प्रयागराज आए हैं तो ये होटलों में ठहरे होंगे इतने सारे लोगों ने भोजन भी किया होगा… किसी न किसी माध्यम से ही ये आए होंगे… जब ये घूमने निकले होंगे तो गाड़ी बुक करके निकले होंगे… संगम तट पर चाय वाले, नाश्ता वाले, खिलौने बेचने वाले, नाव चलाने वाले और भी कई अन्य तरह के लाखों रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं…
सबसे बड़ी बात है कि ये अवसर सिर्फ 45 दिनों के लिए ही है और कुछ महीनों की तैयारियों में ही इतने विशाल मेले का आयोजन किया जा रहा है जिसकी अनुमानित खर्च सिर्फ 7500 करोड़ रुपये है और इससे से जो आय होगी वो लगभग 2 लाख करोड़ रुपये बताई गई है हम अगर इसका आधा भी अनुमानित आय मान ले तो ये कितनी बड़ी रकम होगी इसका अनुमान आप लगा सकते हैं…
इसिलिए ये कहा जा रहा कि एक ओर तो केजरीवाल ने 8500 करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दिए तो वहीं दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ 7500 करोड़ रुपये से 2 लाख करोड़ रुपये की आय के साथ लाखों लोगों के लिए रोजगार भी पैदा किए हैं….