दिल फट चुका था, पर मारने वालों का मन अभी भरा नहीं था। एक अकेले मुकेश को चारों ओर से घेरे हुए हत्यारों ने मुकेश को उनके साथ हो रही इस घटना को समझने तक का मौका भी नहीं दिया। जिन उंगलियों के सहारे मुकेश चलाते थे अपनी कलम, उन उंगलियों की हालत देख हो जाएगी आपकी आँखें नम।
मुकेश चंद्राकर… एक नाम, जिसने बीजापुर की जमीं पर सच की ताकत दिखाई थी। लेकिन आज… मुकेश का नाम एक रहस्य बन चुका है, और यह रहस्य हमें अंदर तक झकझोर देता है। क्या है वो वजह, जिसके कारण एक पत्रकार को इतनी बेरहमी से मार डाला गया? क्या ये केवल एक हत्या थी, या फिर कोई और बुरी साजिश?
छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या ने न केवल प्रदेश में बल्कि पूरे देश में हड़कंप मचा दिया है। एक पत्रकार जो अपने कर्तव्य के प्रति पूरी तरह समर्पित था, उसकी इतनी भयानक हत्या किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकती है। इस घटना ने केवल उसकी मौत पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि उसकी हत्या को लेकर गहरे रहस्यों का भी खुलासा किया है। मुकेश के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि उन्होंने अब तक ऐसी दिल दहला देने वाली स्थितियां नहीं देखी थीं। तो चलिए, जानते हैं इस जघन्य हत्या के बारे में विस्तार से, जो ना सिर्फ बीजापुर बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।
पोस्टमार्टम करते हुए डॉक्टरों के कांप गए हाथ
मुकेश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट न केवल उसकी दर्दनाक हत्या के तरीके को बयां करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि हत्या करने वाले लोग बहुत ही बेरहम थे। रिपोर्ट में बताया गया कि मुकेश के शरीर के अंदरूनी अंगों को न केवल चोट पहुंचाई गई, बल्कि उन्हें तोड़ भी दिया गया। मुकेश के शरीर पर जो चोटें पाई गईं, वो एक इंसान के लिए इतनी भयानक थीं कि उन्हें बयान करना भी मुश्किल था। लीवर के चार टुकड़े, सिर पर 15 फ्रैक्चर, दिल का फटना, गर्दन का टूटना… और इन सभी चोटों को देख कर, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी कांप उठे।
यह वो स्थिति थी, जब डॉक्टरों को यह समझ नहीं आया कि कोई इंसान इतने दर्द और तकलीफ के बाद भी जीवित कैसे रह सकता है। डॉक्टरों का मानना था कि इतने जख्म सिर्फ दो व्यक्तियों द्वारा नहीं दिए जा सकते, इस कारण हत्यारों की संख्या दो से ज्यादा हो सकती है। मुकेश की पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों का कहना था कि उन्होंने इतने बुरे हालात में किसी शव का पोस्टमार्टम पहले कभी नहीं किया था। डॉ. राजेंद्र रॉय ने कहा कि बीते 12 सालों में उन्होंने बस्तर क्षेत्र में सैकड़ों शवों का पोस्टमार्टम किया, लेकिन यह केस उनके लिए सबसे खौफनाक था। वे बताते हैं कि जब उन्हें मुकेश के शरीर पर लगी चोटों का पता चला, तो उनके हाथ कांपने लगे।
क्या थी हत्या की वजह
मुकेश चंद्राकर ने राष्ट्रीय चैनल NDTV के लिए एक रिपोर्ट बनाई, जो सिर्फ भ्रष्टाचार की गहरी परतों को उजागर करने वाली नहीं थी, बल्कि एक ऐसी कहानी को जन्म देने वाली थी, जो उनके लिए मौत का फरमान बन गई। रिपोर्ट में यह बताया गया था कि गंगालूर से हिरौली तक बनने वाली सड़क पर 35 गड्ढे सिर्फ एक किलोमीटर के हिस्से में पाए गए थे। यह सड़क निर्माण 120 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट का हिस्सा था, और सड़क की कुल लंबाई 52 किलोमीटर थी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि सड़क निर्माण में इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री की गुणवत्ता बेहद घटिया थी। यह रिपोर्ट सिर्फ भ्रष्टाचार का पर्दाफाश नहीं करती थी, बल्कि यह मुकेश के लिए एक खतरनाक सिलसिला भी शुरू कर देती है। सड़क निर्माण में गड्ढे, खराब गुणवत्ता और करोड़ों के घोटाले को उजागर करने वाली इस रिपोर्ट का असर न केवल प्रशासन पर पड़ा, बल्कि यह मुकेश की जान लेने के लिए एक खौ़फनाक कारण बन गई।
क्या ठेकेदार है जिम्मेदार
अब तक की जांच से यह साफ़ हो गया है कि हत्या के लिए ठेकेदार सुरेश चंद्राकर और उसके साथियों का हाथ हो सकता है। सुरेश चंद्राकर, जो बीजापुर में एक ठेकेदार के रूप में काम करता था, को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। शुरुआत में पुलिस ने यह मान लिया था कि हत्या में केवल दो लोग शामिल थे। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अपराध स्थल की जाँच के बाद यह मानना मुश्किल हो गया कि केवल दो लोगों ने इतनी गंभीर चोटें पहुंचाईं।
इस मामले में पुलिस ने सुरेश चंद्राकर के अलावा कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया है, और उनकी भूमिका का पता लगाने के लिए गहन जांच की जा रही है। पुलिस का कहना है कि शुरूआत में हत्या के दो आरोपी थे, लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हत्यारों की संख्या और भी ज्यादा हो सकती है। इन सब घटनाओं ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या ये हत्या एक व्यक्तिगत दुश्मनी का नतीजा थी, या फिर इसमें किसी और बड़े खेल का हाथ हो सकता है।
मुकेश चंद्राकर की हत्या यह महसूस कराती हैं कि पत्रकारिता सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक जोखिम है। आज उनकी मौत के बाद, यह सवाल भी सामने आता है कि क्या सच बोलने वालों को हमेशा ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ेगा? उनकी हत्या एक सच्चाई का खामोश होना नहीं, बल्कि एक और दर्दनाक चुप्पी की शुरुआत है। मुकेश चंद्राकर अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका सच और उनकी आवाज़ कभी खत्म नहीं होगी।