दिल्ली से आ गया ऑर्डर, सुनकर नीतीश कुनार भी कर देंगे सरेंडर, बीजेपी ने ढूंढ लिया पटलू चाचा का विकल्प !
नीतीश की बारगेनिंग पावर के आगे पुष्पा स्टाइल में खड़ी रहेगी बीजेपी, गठबंधन हुआ भी तो नीतीश नहीं बनेंगे मुख्यमंत्री, अमित शाह ने सीधा सीधा दे दिया संकेत!
नीतीश से पहले बीजेपी ने चल दी नहले पर दहले वाली चाल, बिहार में खरमास बाद सियासी खेल की स्क्रीप्ट तैयार, बीजेपी का होगा सीएम तो एलजेपी रामविलास को मिलेगा डिप्टी सीएम
चाचा नीतीश किधर के हैं. बीजेपी के हैं या आरजेडी के… नीतीश कुमार किसके दही चूड़ा भोज में जाएंगे. सम्राट चौधरी वाले, या लालू यादव वाले… बिहार में एक सियासी दस्तूर रहा है.. हर सरमास बाद कोई नया खेल जरूर होता है. और इस नए खेल की असली पृष्ठभूमि तैयार होती है दही चूड़ा भोज से. अबकी बार भी कुछ ऐसा ही होगा. लेकिन नीतीश कुमार की सियासी फितरत को समझते हुए बीजेपी अबकी बार उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है. और इसकी पक्की खबर दिल्ली से है. खबर तो ये है नीतीश अबकी बार पलटी मारने के फुल इरादे में हैं लेकिन पलटी नहीं मार पा रहे हैं. वो पिजरें में कैद परिंदे की तरह छटपटा रहे हैं. लेकिन सवाल तो यही कि नीतीश कि सियासी मजबूरी क्या हो सकती है. आइए अगले कुछ मिनट में समझने की कोशिश करते हैं.
आरजेडी ने नीतीश कुमार को खुल्लम खुला ऑफर दे दिया हमारे साथ आ जाइए. तेजस्वी के ना के बाद भी लालू यादव ने तो छोटे भाई को दही चूड़ा के भोज पर बुला ही लिया है. इसके बाद भी नीतीश जा नहीं पा रहे हैं. इसकी वजह हैं चिराग पासवान. अब आपको लगेगा कि नीतीश और बीजेपी के झगड़े में चिराग पासवान कहां से आ गए.
राष्ट्रवाद न्यूज के सूत्रों ने जो जानकारी दी उसमें बीजेपी ने ये तय कर लिया है कि इस साल के विधानसभा चुनाव में बिहार में उसी फॉर्मूले पर चुनाव लड़ेगी जैसे ओडिशा में उसने चुनाव लड़ा था और नवीन पटनायक का सियासी करियर खत्म कर दिया था. बीजेपी ने नीतीश कुमार और तेजस्वी ययादव की हालिया तस्वीर के बाद करीब करीब इसे तय कर लिया है. लेकिन बीजेपी को अच्छे से पता है कि नीतीश को छोड़ने के बाद उसकी राह भी आसान नहीं होने वाली. अगर नीतीश कुमार और आरजेडी एक साथ आ गए तो 2015 की तरह नतीजे बदल सकते हैं. इसलिए बीजेपी अपने साथ एक मजबूत पार्टी को अलायंस के रूप में रखना चाहती है. ऐसे में उसकी इस मुश्किल का हाल चिराग पासवान ही ढूंढ सकते हैं. चिराग बिहार को ब्रांड बिहार बनाना चाहते हैं. वो बिहार को बीमारू राज्य से बाहर निकालने का ब्लूप्रिंट पहले भी नरेन्द्र मोदी के सामने रख चुके हैं. चिराग पासवान में ये काबिलियत है कि वो जेडीयू के खिलाफ अगर चुनाव ना जीत पाए तो कम से कम जेडीयू को डैमैज जरूर कर सकते हैं. इसे चिराग ने बखूबी 2020 के चुनाव में साबित करके दिखाया था. चिराग जेडीयू के कितना बड़ा सियासी डेंट दे सकते हैं इसकी पूरी कहानी समझ लीजिए.
2020 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी रामविलास के प्रमुख चिराग पासवान ने NDA का दामन छोड़ दिया था और अलग होकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था. चिराग की नीतीश कुमार से नाराज़गी का ही यह परिणाम था कि नीतीश कुमार को इसका बड़ा खामियाजा भी भुगतना पड़ा। चिराग पासवान ने भाजपा के सभी 22 बागी विधायको को अपने दल में शामिल किया और जैसा कि उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान नीतीश कुमार पे तंज कसते हुए प्रहार भी किया था कि उनका मकसद सीटों पे जीतने से ज्यादा नीतीश कुमार को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने का है और वो बहुत हद तक इसमें सफल भी हुए।
एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी ने अपने अधिकतर प्रत्याशियों को जेडीयू के खिलाफ चुनावी मैदान में उतारा जिसमें एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी को कुछ खास फायदा तो नहीं हुआ लेकिन इस से नीतीश कुमार को लगभग पच्चीस सीटों पर हार का सामना करना पड़ा । एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी ने 134 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारा था लेकिन वह केवल एक ही सीट पर जीत दर्ज कर सकी ।
इनमें से कुछ महत्वपूर्ण सीटें जिसमें नीतीश कुमार मुंह के बल गिरे है क्योंकि वहां एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी ने अधिक वोट काट लिया।
जैसे कि जहानाबाद विधानसभा में जेडीयू में मंत्री रह चुके कृष्णनंदन वर्मा को पैंतीस हजार वोट मिले आर वह हार गए वही राजद के सुदय यादव को 63 हजार वोट मिले आर उन्होंने जीत हासिल की और एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी के प्रत्याशी इंदु देवी कश्यप ने लगभग बीस हजार से अधिक वोट प्राप्त किया और जेडीयू को नुकसान पहुंचाने में सफल हुए ।
अरवल जिला के कुर्था विधानसभा में यहीं स्थिति बनी रही जहां राजद प्रत्याशी बागी कुमार वर्मा ने 54 हजार वोट से अधिक प्राप्त कर जीत हासिल किया वही जेडीयू प्रत्याशी सत्यदेव सिंह 8 हजार वोट से हारे जबकि एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी प्रत्याशी भुवनेश्वर पाठक ने 20 हजार वोट प्राप्त किए आर जेडीयू को यहां भी नुकसान पहुंचाने में सफल हुए ।
रोहतास जिले के दिनारा विधानसभा से नीतीश कुमार की पार्टी से मंत्री रह चुके जय कुमार सिंह को भी चुनावी मैदान में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और वह केवल 21 हजार वोटो पर सिमट के रह गए जबकि एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी के प्रत्याशी राजेंद्र सिंह ने 46 हजार वोट प्राप्त किया जो कि जेडीयू के लिए बहुत ही गंभीर विषय बन गई और इस सीट से राजद प्रत्याशी विजय कुमार मंडल की जीत हुई जिन्होंने 50 हजार वोट प्राप्त किया था दिनारा विधानसभा में एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी ने जेडीयू से अधिक वोट प्राप्त किया आर जीत के लगभग करीब भी पहुंच चुके थे ।
वही सासाराम से राजद प्रत्याशी की जीत हुई और जेडीयू प्रत्याशी लगभग 10 हजार वोट से हारी जिसका कही न कही कारण बनी एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी क्यूंकि इस सीट पर भी एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी ने लगभग 12 हजार वोट से अधिक काटा ।
बेगूसराय के मटिहानी जिला में भी कुछ यही परिस्थिति बनी रही जहां एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी प्रत्याशी राज कुमार सिंह ने लगभग जेडीयू से भोगा सिंह के 26 हजार वोट काट लिए जिसका परिणाम यह हुआ कि CPI प्रत्याशी राजेंद्र प्रताप सिंह ने मात्र 37 हजार की मत से जीत हासिल किया ।
महुआ विधानसभा से राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव चुनाव लड़ा करते थे लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में सीट बदली गई और राकेश रौशन को राजद से टिकट दी गई और उन्होंने 30 हजार का मत लाकर जीत प्राप्त किया वही जेडीयू की प्रत्याशी असमा प्रवीण को 24 हजार का मत मिला । इस सीट पर राजद के प्रत्याशी के जीतने का कारण एलजेपी रामविलास यानि चिराग की पार्टी प्रत्याशी संजय कुमार सिंह रहे क्यूंकि उन्होंने काफी वोट काट लिया था ।
चिराग के वोट काटने का ही अंजाम था कि जेडीयू 2020 में सिर्फ 45 सीटों पर सिमट कर रह गई और बीजेपी उससे बड़ी पार्टी बन गई.
खैर इस पूरी रिपोर्ट को पढने के बाद आपको क्या लगता है कि बीजेपी को जेडीयू के साथ रहना चाहिए या नहीं. क्या बीजेपी जेडीयू को मिलकर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहिए. अपना जवाब हमें कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा. और बिहार से जुड़ी ऐसी ही खबरों के लिए राष्ट्रवाद न्यूज को सब्सक्राइब करना मत भूलिएगा.